वैक्सिन और दवा की आस मे बैठी है दुनिया , कोरोना के प्रकोप का नही दिख रहा अंत….
कोरोना के खिलाफ भारत मे लड़ाई जारी है लेकिन यह लड़ाई कितने दिन चलेगी और किस मोड़पर जाकर रुकेगी, यह सवाल सबके जेहन में घर करने लगा है। यह लॉकडाउन कबतक चलेगा और जब खुलेगा तो क्या कोरोना वायरस खत्म हो जायेगा? ये ऐसे सवाल है जिनसे हर आदमी सरोकार रखता है। दुनिया के तमाम देश इस बीमारी की जद में है और इससे निकलने के लिए छटपटा रहे हैं,भविष्य की चिंताएं सबको सत्ता रही है।
लॉकडाउन मॉडल
दरअसल कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमने अबतक दुनिया भर में दो मॉडल देखे, एक लॉक डाउन मॉडल जो चीन के वुहान में दिखा और बाद में उसे भारत सहित, दक्षिण ,कोरिया, जापान सहित कई अन्य देशों ने फॉलो किया।दूसरा मॉडल रहा बिना लॉक डाउन किये हर्ड इम्युनिटी को डेवलप करने की रणनीति जो को यूके, यूएस, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया स्पेन और इटली जैसे देशों ने अपनाने की कोशिस की जिन्हें अपने विशाल हेल्थ केअर सेक्टर पर भरोसा था लेकिन महामारी के विकराल रूप के सामने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर छोटा पड़ गया और मौत का आंकड़ा बढ़ता चला गया।
अबतक के मिले परिणामो पर नज़र डालें उससे पहले हम आपको बताते चले कि हर्ड इम्युनिटी होती क्या है?
हर्ड इम्युनिटी
दरसअल हर्ड इम्युनिटी का मतलब होता है किसी भी देश की अधिकांश आबादी में उस बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित होना। ऐसा तब होता है जब देश की 60-80% आबादी से होकर वायरस गुजरता है और ऐसे में अधिकांश लोगों के शरीर मे इस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाता है। इसका वैज्ञानिक तथ्य ये है कि जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो व्यक्ति का शरीर उस वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए ऐंटीबॉडी तैयार करता है जिससे बचाव संभव होता है और एकबार एंटीबाडी विकसित हो जाने के बाद जब कभी दुबारा भी वायरस हमला करता है तो शरीर की एंटीबाडी जिसे सामान्य भाषा मे प्रतिरोधक क्षमता भी कह सकते है वह बचाव करती है। जब अधिकांश आबादी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो फिर वायरस का एक से दूसरे से इन्फेक्शन के चान्सेस भी बेहद कम हो जाते हैं।हर्ड इम्युनिटी डेवलप करने का दूसरा तरीका है मास इम्यूनाइजेशन, जिससे अधिकांश आबादी में वैक्सीन के जरिये हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो जाती है।लेकिन चुकी अबतक कोरोना की कोई वैक्सीन निजाद नही है लिहाजा इम्यूनाइजेशन के जरिये हर्ड इम्युनिटी संभव नहीं।
लिहाजा मास इन्फेक्शन के जरिये जो देश हर्ड इम्युनिटी डेवलप करने की दिशा में बढ़े उनका हाल बेहाल हो गया। उदाहरण के लियेअमेरिका ने समय रहते लॉक डाउन नही किया और वहां मौत का आंकड़ा दुनिया मे सर्वाधिक है, यही हाल स्पेन, इटली, यूके , ऑस्ट्रेलिया और स्वीडन जैसे देशो का हुआ।
लॉकडाउन का असर
भारत ने कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई के मैदान में मोर्चा संभालते हुये लॉक डाउन की रणनीति अपनाई।पहले 21 दिनों का लॉक डाउन हुआ , उम्मीद थी कि इस दौरान कर्व आयेगा लेकिन ऐसा नही हुआ तो फिर 20 दिनों का लॉक डाउन और बढ़ा दिया गया और प्राप्त आंकड़े बतलाते है कि इन्फेक्शन की दर में 40 फीसदी की गिरावट दिख रही है।
वही लॉक डाउन में आम जन जीवन और अर्थव्यवस्था पर पड़ते दुष्परिणाम को देखते हुये इसमे लगातार ढील दी जा रही है। तो सवाल फिर से उठ रहे है की इस लॉक डाउन की रणनीति का फायदा क्या और लॉक डाउन हटने के बाद क्या होगा?
भारत जैसे देश में जहा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बेहद कमजोर है सरकार के पास लॉक डाउन के अलावा कोई विकल्प नही था और यह रणनीति सही साबित हुई क्यूंकि इस बीमारी के आउट ब्रेक पर काबू पाया जा सका और कम्युनिटी ट्रांसमिट होने की दर भी धीमी रही।
अब यह वायरस इतने दिनों में फॉरेन कैरियर से कॉन्टेक्ट और वहां से कम्युनिटी में जा पहुचा है, जिसके अलग अलग पॉकेट हॉट स्पॉट के रूप में लॉक, सील और कन्टेन किये जा रहे है ताकि इसके फैलाव को यही रोका जा सके।लॉक डाउन खुलने के बाद भी रणनीति साफ है कि इलाको को ग्रीन, येलो और रेड जोन में बांटे जाएंगे और उसी मुताबिक उसके लॉक डाउन, पार्शियल लॉक डाउन और लॉक डाउन से मुक्ति मिलेगी।एपिडेमोलॉजिस्ट और विरोलॉजिस्ट का कहना है कि यह बीमारी भी समय के साथ अन्य बीमारियों की तरह इंसानों के बीच मे रहेगी। और इसपे काबू तबतक नही होगा जबतक कोई प्रभावी दवा न विकसित हो जाये या फिर वैक्सीन न बन जाये।ऐसे में भारत ने भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए लॉक डाउन के दौरान डिस्ट्रिक्ट लेवल तक कोविड 19 हॉस्पिटल और सेन्टर का निर्माण किया है और इस इंफ्रास्ट्रक्चर में लगातार इजाफा हो रहा है।अब तक देश मे कोविड मरीजो के लिए एक लाख 75 हजार आइसोलेशन बेड और 21800 आई सी यू बेड तैयार कर चुका है।वेंटीलेटर की संख्या लगातार बधाई जा रही है वही डिस्ट्रिक्ट लेवल तक ऑनलाइन डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की ट्रेनिंग का कार्य भी जारी है।
अब क्या होगा इसके बाद….
सरकार जानती है कि लॉक डाउन खुलने के बाद यह वायरस अपना पांव पसरेगा ऐसे में इससे मुकाबला करने के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का होना जरूरी है।80 फीसदी लोगो पर तो यह घातक नही लेकिन 20 फीसदी लोगों पर कोरोना वायरस का हमला घातक होता है इसीलिय लोगो को सलाह दी जा रही है कि इम्युनिटी डेवलोपमेन्ट पर ध्यान दे और पीएम ने भी अपने स्पीच में इम्युनिटी डेवलेपमेन्ट पर फोकस किया था।समय के साथ कोरोना वायरस 60 से 80 फीसदी लोगो से होकर गुजरेगा और फिर जाकर भारत मे इसके हर्ड इम्युनिटी की कल्पना की जा सकती है, अगर इस बीच मेडिसिन या वैक्सीन नही विकसित हुआ।लेकिन सरकार की रणनीति साफ है कि इसका फैलाव धीरे धीरे हो ताकि मरीजो को संभालने के लिए पर्याप्त हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर हो, टेस्ट की दर लगातार बढ़ाई जाए ताकि समय रहते इसकी चपेट में आने वाले लोगो की पहचान हो। साथ ही मौजूदा स्थित में मास्क, फिजिकल डिस्टनसिंग, हैंड वाश, सेनिटाइजर का इस्तेमाल और इम्युनिटी डेवलपमेन्ट पर जोर दिया जाए ताकि इसका ग्रोथ रेशियो कम रहे, साथ ही साथ संक्रमित लोगो को जरूरी चिकित्सकीय सहायता भी मिलती रहे।लेकिन इस समूचे प्रोसेस, वायरस के स्प्रेड और बिना वैक्सीन/ दवा जीवन के सामान्य होने का अनुमान लगाया जाये तो इसमे पूरा साल निकल जाये ऐसा कहना अतिश्योक्ति नही होगी।
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