दिल्ली के एम्स में एक ऐतिहासिक ऑपरेशन कर एक ऐसे व्यक्ति की जान बचाई गई है, जिसके लिवर में डेढ़ महीने से 20 सेंटीमीटर लम्बा चाकू धंसा हुआ था. शरीर के अंदर संक्रमण भी फैल रहा था, लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी एम्स के डॉक्टर उस मरीज के लिए भगवान साबित हुए और चिकित्सा जगत के इतिहास में अब तक के सबसे अलग अनोखे ऑपरेशन ने उस मरीज को जीवनदान दे दिया.

मानसिक बीमार था युवक

दरअसल, एम्स में यह अजीबो गरीब मामला आया था हरियाणा के एक गांव से. जहां करीब 28 साल के एक युवक गांजे की लत के कारण मानसिक रूप से बीमार हो गया था. इसी क्रम में उसने करीब डेढ़ महीने पहले एक 20 सेंटीमीटर लम्बा चाकू निगल लिया था. तब किस ने उसे ऐसा करते नहीं देखा. लेकिन जब चाकू ने अंदर नुकसान करना शुरू किया, उसके बाद पेट दर्द व भूख न लगने की शिकायत सामने आई.

12 जुलाई को एम्स में आया मामला

घर वालों ने डॉक्टर को दिखाया और एक्सरे हुआ तब यह हैरान करने वाली बात सामने आई. एम्स के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के सर्जन डॉ. एन. आर दास की अगुवाई में यह ऑपरेशन हुआ. उन्होंने बताया कि 12 जुलाई को यह मरीज सफदरजंग अस्पताल से रेफर होकर एम्स पहुंचा था. एक्सरे में पेट में इतना बड़ा चाकू देखकर डॉक्टर चौंक गए. काफी पूछताछ पर मरीज ने इसकी जानकारी दी. लेकिन तब तक इसकी हालत काफी खराब हो चुकी थी.

बेहद गम्भीर थी स्थिति

उन्होंने बताया कि जब हमने मरीज का सीटी स्कैन किया तो पता चला कि चाकू का करीब 10 सेंटीमीटर धारदार हिस्सा आमाशय की दीवार भेद कर पूरी तरह लिवर में धंसा है. वहीं, चाकू को पकड़ने वाला हिस्सा आमाशय में था. डॉ. दास ने बताया कि इंफेक्शन के कारण लिवर व फेफड़े में मवाद भर गया था. मरीज के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर केवल छह था और खून में संक्रमण का स्तर 22000 तक था. लीवर में मवाद व फेफड़े में पानी भर गया था.

ऐसे हुई ऑपरेशन की तैयारी

डॉ. दास ने कहा कि इस दौरान कोरोना का डर तो था ही, ऐसे में आपरेशन करने का जोखिम नहीं लिया जा सकता था. फिर, रेडियोलाजिस्ट, मनोचिकित्सकों व गैस्ट्रोलाजिस्ट की मदद ली गई. पहले मवाद निकाला गया. इस दौरान मनोचिकित्सकों ने दवा व लगातार काउंसलिंग के जरिए मरीज में भरोसा पैदा किया कि वह ठीक हो सकता है. खून चढ़ायाकर व खानपान में पोषण के जरिए शरीर को थोड़ा ताकतवर बनाया गया, ताकि वह सर्जरी झेल सके.

19 जुलाई को हुआ ऑपरेशन

फिर करीब हफ्ते भर बाद, 19 जुलाई को डॉक्टर्स की टीम ने सर्जरी की. डॉ. दास ने बताया कि तीन घंटे चली सर्जरी में चाकू को न केवल सुरक्षित निकाल लिया गया, बल्कि मरीज भी अब जोखिम से बाहर है. यह ऑपरेशन कितना चुनौतीपूर्ण रहा, इसे लेकर डॉ. दास ने कहा कि चाकू लिवर से निकालने की चुनौती सबसे बड़ी थी, क्योंकि चाकू वहां धंसा था, जहां लिवर के अंदर व बाहर खून ले जाने वाली मुख्य नसें थीं, साथ ही लिवर से पित्त ले जाने वाली नली भी थी. इनमें से किसी को भी क्षति पहुंच सकती थी, जिसमें बहुत ज्यादा खून बहने व मरीज की जान जाने का डर था.

आंत के सहारे लिवर तक पहुंचे डॉक्टर

उन्होंने बताया कि इसलिए हम आंत की दीवार से चीरा लगाकर लिवर में गए और वहां से चाकू को बहुत ही सावधानी व आहिस्ते से बाहर निकाला. डॉ. दास का कहना था कि यह मामला इस मामले में भी जानलेवा था कि चाकू गले में से खाने व सांस की नली को भी चीर सकता था, फेफड़े में भी जा सकता था या दिल में धंस कर भी मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता था. लेकिन किस्मत अच्छी थी कि चाकू पेट तक पहुंच गया.

चिकित्सा जगत का पहला मामला

डॉक्टर्स की तरफ से बताया गया है कि मरीज ने कटोरा भर पानी के सहारे समूचे चाकू को निगला था. डॉक्टर्स का दावा है कि कुल तीन चार मामले अब तक ऐसे मरीजों के आए हैं, जिनमें मरीजों ने सुई या आलपीन या मछली के कांटे जैसी नुकीली वस्तुएं निगली हो. लेकिन धारदार चाकू निगल जाने का यह पहला और अनूठा मामला है. अब तक चिकित्सा जगत में ऐसा नहीं दिखा है और न ही अब तक कहीं इस तरह का ऑपरेशन कर मरीज की जान बचाई गई है.

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