अक्सर आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि वेंटीलेटर पर जाने वाले मरीज़ ठीक नहीं होते या अस्पताल सिर्फ़ पैसा लूटने के लिए मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखते हैं। आइए जानते हैं आज बिल्कुल सामान्य भाषा में कि वेंटीलेटर है क्या।
सामान्य अवस्था में शरीर में साँस लेने और छोड़ने का काम फेफड़े करते हैं। अगर शरीर की अवस्था ऐसी है कि:
1. मरीज़ फेफड़े की किसी चोट या बीमारी के कारण ख़ुद से साँस नहीं ले सकता।
2. यह डर है कि मरीज़ की स्थिति कभी भी ख़राब हो सकती है जिससे उसकी साँस लेने की क्षमता प्रभावित हो जाएगी।
3. मरीज़ के मस्तिष्क में ऐसी चोट है कि उसे पूरी तरह बेहोश रखा जाए ताकि मस्तिष्क पर दवाब ना पड़े।
तो ऐसी परिस्थितियों में मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखा जाता है। और इन परिस्थितियों में वेंटीलेटर का मुख्य काम है कि जब तक मरीज़ ख़ुद से साँस लेने के लायक़ न हो जाए, तब तक एक कृत्रिम फेफड़े की तरह काम करना। यह फेफड़े की जगह मरीज़ को साँस देता है ताकि उसे पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती रहे।
वेंटीलेटर में कई मोड होते हैं जो मरीज़ की स्थिति के अनुसार बदले जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर मरीज़ का फेफड़ा पूरी तरह ख़राब है तो उसमें मोड अलग होगा और अगर फेफड़ा 50% ख़राब है तो उसका मोड अलग होगा। जैसे-जैसे मरीज़ की साँस लेने की क्षमता ठीक होती है, वैसे-वैसे वेंटीलेटर के मोड में बदलाव किया जाता है। और जब मरीज़ ख़ुद से अच्छे तरीके से साँस लेने लगता है तो उसे वेंटीलेटर से हटाया जाता है।
चूँकि वेंटीलेटर पर रखे जाने वाले मरीज़ की स्थिति काफ़ी गंभीर रहती है और वह बेहोश रहते हैं या उन्हें बेहोश रखा जाता है, इसीलिए जानकारी के अभाव में लोगों में यह संशय रहता है कि उन्हें धोखे में रखा जा रहा है।
तो हमेशा ध्यान रखें कि अगर मरीज़ की साँस लेने की क्षमता किसी भी बीमारी या चोट से प्रभावित हो सकती है, तो उन्हें वेंटीलेटर पर रखने की ज़रूरत पड़ सकती है।
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