Blood Cancer

ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant) एक महत्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति साबित हो रही है। लेकिन इन बीमारियों से जूझ रहे हजारों मरीजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उपयुक्त डोनर का न मिल पाना है। इस स्थिति को सुधारने के लिए डोनर डेटाबेस को व्यापक बनाने की जरूरत है।

क्या है स्टेम सेल ट्रांसप्लांट?

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक प्रक्रिया है जिसमें स्वस्थ डोनर से लिए गए स्टेम सेल्स को मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। यह विशेष रूप से उन मरीजों के लिए फायदेमंद है, जिनकी बोन मैरो (अस्थि मज्जा) सही ढंग से काम नहीं कर रही होती। यह प्रक्रिया शरीर में नई स्वस्थ कोशिकाओं को उत्पन्न करने में मदद करती है और मरीज के जीवन को बचाने में कारगर होती है।

किन बीमारियों में मददगार है स्टेम सेल ट्रांसप्लांट?

  1. ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया, लिंफोमा, मायलोमा) – जब शरीर में असामान्य रक्त कोशिकाओं का अनियंत्रित उत्पादन होता है।
  2. थैलेसीमिया – एक अनुवांशिक रक्त विकार जिसमें शरीर पर्याप्त स्वस्थ हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता।
  3. अप्लास्टिक एनीमिया – एक दुर्लभ बीमारी जिसमें बोन मैरो नए रक्त कोशिकाएं बनाना बंद कर देता है।
  4. सीवियर इम्यून डेफिशियंसी डिसऑर्डर – जन्मजात बीमारियां जिनमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत कमजोर होती है।

भारत में डोनर की कमी एक बड़ी समस्या

भारत में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता वाले हजारों मरीजों को उपयुक्त डोनर नहीं मिल पा रहे हैं। ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) मैचिंग के अभाव में कई मरीजों की जान चली जाती है। पश्चिमी देशों में स्टेम सेल डोनर डेटाबेस मजबूत है, लेकिन भारत में यह अभी भी सीमित है।

एक आंकड़े के अनुसार, भारत में हर साल 50,000 से अधिक लोगों को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन उपलब्ध डोनरों की संख्या बहुत कम है।

डोनर बनने के लिए क्या करना होगा?

कोई भी स्वस्थ व्यक्ति, जिसकी उम्र 18-50 साल के बीच हो, स्टेम सेल डोनर बन सकता है।

भारत में DKMS-BMST, DATRI और Marrow Donor Registry India (MDRI) जैसी संस्थाएं स्टेम सेल डोनर रजिस्ट्रेशन कर रही हैं।

केवल एक साधारण स्वैब टेस्ट के जरिए व्यक्ति का HLA टाइपिंग टेस्ट किया जाता है, जिससे पता चलता है कि वह किसी जरूरतमंद मरीज से मैच करता है या नहीं।

मैच होने पर ब्लड ड्रॉ या बोन मैरो से स्टेम सेल निकालकर मरीज को ट्रांसप्लांट किए जाते हैं।

समाज की भागीदारी जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ज्यादा लोग स्टेम सेल डोनर बनें, तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। समाज में इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि लोग आगे आकर डोनर रजिस्टर कर सकें।

निष्कर्ष

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कई असाध्य बीमारियों का समाधान बन चुका है, लेकिन डोनरों की कमी के कारण हजारों मरीजों का इलाज संभव नहीं हो पा रहा। यदि हम सभी मिलकर डोनर डेटाबेस को मजबूत करने के लिए कदम उठाएं, तो ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया से जूझ रहे मरीजों को नया जीवन देने में मदद मिल सकती है।

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