नल के पानी, फूड पैकेजिंग, नॉन-स्टिक कुकवेयर और यहां तक कि रोजमर्रा के घरेलू उत्पादों में पाए जाने वाले ‘फॉरएवर केमिकल्स’ (PFAS – पॉलिफ्लुओरोअल्किल सब्सटेंस) इंसानों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। एक नए अध्ययन में पता चला है कि ये केमिकल्स न केवल कैंसर और हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ाते हैं, बल्कि इंसानों की औसत जीवन प्रत्याशा को भी प्रभावित कर सकते हैं।
क्या हैं फॉरएवर केमिकल्स?
PFAS एक प्रकार के सिंथेटिक केमिकल्स होते हैं, जिनका उपयोग 1940 के दशक से किया जा रहा है। ये पानी, तेल और गर्मी को सहन करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए इन्हें नॉन-स्टिक कुकवेयर, वॉटरप्रूफ कपड़े, फायर-फाइटिंग फोम, कॉस्मेटिक्स और फास्ट फूड पैकेजिंग में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि ये केमिकल्स प्राकृतिक रूप से जल्दी नष्ट नहीं होते, इसलिए इन्हें ‘फॉरएवर केमिकल्स’ कहा जाता है।
अध्ययन और उसके निष्कर्ष
हाल ही में JAMA Internal Medicine में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, उच्च मात्रा में PFAS के संपर्क में आने वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा 2.5 से 4 साल तक कम हो सकती है। इस अध्ययन के लिए अमेरिका में 50,000 से अधिक लोगों के ब्लड सैंपल की जांच की गई, जिसमें PFAS के उच्च स्तर पाए गए।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों के खून में ये केमिकल्स अधिक मात्रा में थे, उनमें हृदय रोग, कैंसर, लीवर की समस्याएं और इम्यून सिस्टम की कमजोरी के लक्षण अधिक देखे गए। अध्ययन के अनुसार, ये केमिकल्स शरीर में हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जिससे मेटाबॉलिज्म धीमा हो सकता है और इंसान की उम्र घट सकती है।
भारत में क्या स्थिति है?
भारत में भी नल के पानी, प्लास्टिक पैकेजिंग और खाद्य सामग्रियों में PFAS की मौजूदगी एक बड़ा मुद्दा है। 2023 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के पानी में इन केमिकल्स के ट्रेसेस पाए गए। चूंकि भारत में अभी इस पर कड़े नियम नहीं हैं, इसलिए लोग अनजाने में इन जहरीले केमिकल्स के संपर्क में आ रहे हैं।
कैसे बचा जा सकता है?
विशेषज्ञों के अनुसार, इन केमिकल्स के प्रभाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- फिल्टर्ड पानी पिएं – रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) और कार्बन फिल्टर वाले वॉटर प्यूरीफायर का उपयोग करें।
- नॉन-स्टिक कुकवेयर से बचें – टेफ्लॉन कोटेड पैन के बजाय स्टील या कास्ट आयरन कुकवेयर अपनाएं।
- फास्ट फूड पैकेजिंग से बचें – बाजार में मिलने वाले पैक्ड फूड और माइक्रोवेव पॉपकॉर्न से दूरी बनाएं।
- प्लास्टिक उत्पादों का कम उपयोग करें – खासकर ऐसे प्लास्टिक जिनमें ‘PFAS-free’ का लेबल नहीं हो।
- संगठनों से नियम बनाने की मांग करें – सरकारों और कंपनियों को इस समस्या के समाधान के लिए ठोस नीतियां लागू करनी चाहिए।
फॉरएवर केमिकल्स आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन इनके दुष्प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अगर जल्द ही सख्त नियम नहीं बनाए गए, तो आने वाले समय में ये केमिकल्स न केवल हमारी सेहत बल्कि हमारी औसत जीवन प्रत्याशा पर भी गंभीर असर डाल सकते हैं। समय रहते जागरूकता और सही उपाय अपनाकर हम इस खतरे से खुद को और आने वाली पीढ़ियों को बचा सकते हैं।
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