विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने पारंपरिक चिकित्सा को एक नई पहचान दी है। अब आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियां अंतर्राष्ट्रीय रोग वर्गीकरण (ICD-11) में शामिल हो गई हैं। यह फैसला पारंपरिक चिकित्सा को वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली का हिस्सा बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
ICD-11 में नया बदलाव
जनवरी 2024 में नई दिल्ली में ICD-11 TM-2 का शुभारंभ किया गया था, जिसके बाद एक साल तक इसका परीक्षण हुआ। नवंबर 2024 में मलेशिया में WHO की बैठक के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया और अब यह WHO के ICD-11 ब्लू ब्राउज़र पर उपलब्ध है।
पारंपरिक चिकित्सा को मिली वैश्विक पहचान
इस बदलाव से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा को स्वास्थ्य रिपोर्टिंग, शोध और नीति निर्माण में विशेष स्थान मिलेगा।
आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा, “ICD-11 का यह अपडेट पारंपरिक चिकित्सा के वैश्विक एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह डेटा संग्रहण को बेहतर बनाएगा और नीति निर्माण को सशक्त करेगा।”
पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा का संगम
WHO के विशेषज्ञ डॉ. रॉबर्ट जैकब ने कहा, “ICD-11 अब अधिक सरल और प्रभावी हो गया है। इससे राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों को लाभ होगा।”
वैश्विक स्वास्थ्य में पारंपरिक चिकित्सा की अहमियत
सटीक डेटा संग्रह: पारंपरिक चिकित्सा के उपयोग को सही तरीके से ट्रैक किया जा सकेगा।
बेहतर नीति निर्माण: सरकारें इसे स्वास्थ्य नीति में शामिल कर सकेंगी।
बेहतर इलाज के विकल्प: रोगियों को पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा का फायदा मिलेगा।
आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी के लिए नया अवसर
ये प्रणालियां सदियों से स्वास्थ्य का आधार रही हैं। अब इनका प्रभाव वैश्विक स्तर पर भी दिखेगा। इससे समावेशी और संतुलित स्वास्थ्य प्रणाली बनेगी।
नए फैसले से क्या बदलेगा?
ICD-11 में पारंपरिक चिकित्सा का समावेश रोग संबंधी डेटा को सटीक रूप से एकत्र करेगा। सरकारें इसकी लागत और प्रभावशीलता का मूल्यांकन कर पाएंगी।
WHO की यह पहल आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सा के बेहतर समन्वय की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा को वैश्विक स्वास्थ्य में विशेष स्थान मिलेगा और पारंपरिक चिकित्सा की प्रासंगिकता को और मजबूती मिलेगी।
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