AIIMS Surgery

एम्स (AIIMS) के डॉक्टरों ने एक दुर्लभ और जटिल सर्जरी कर 17 वर्षीय लड़के के शरीर से परजीवी जुड़वां को सफलतापूर्वक हटा दिया। इस बच्चे के शरीर में चार पैर जुड़े थे।यह एक असाधारण चिकित्सा उपलब्धि है, क्योंकि अब तक विश्व चिकित्सा साहित्य में ऐसे केवल 40 मामले ही दर्ज किए गए हैं।

क्या है परजीवी जुड़वां?

जुड़वां बच्चे जन्म लेने के दौरान हर 50,000 से 1,00,000 मामलों में से एक बार जुड़े हुए पैदा होते हैं। इनमें से कुछ मामलों में एक भ्रूण पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता और दूसरे पर निर्भर रहता है, जिसे परजीवी जुड़वां (Parasitic Twin) कहा जाता है। इस दुर्लभ स्थिति में एक विकसित जुड़वां (ऑटोसाइट) पूरी तरह कार्यशील होता है, जबकि दूसरा अधूरा भ्रूण उसी के शरीर से जुड़ा रहता है।

मोहित (बदला हुआ नाम) के मामले में परजीवी जुड़वां के रूप में एक पूर्ण विकसित पैर उनके पेट से जुड़ा हुआ था, जिसमें अविकसित जननांग भी शामिल थे। चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्हें इस पैर में दर्द, स्पर्श और तापमान का अनुभव होता था। हालांकि, वह सामान्य रूप से खाते-पीते थे और उनके मल-मूत्र त्याग की क्रियाएं भी सामान्य थीं।

सामाजिक संघर्ष और उम्मीद की किरण

बचपन से ही मोहित को इस स्थिति के कारण कई सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोग उनके साथ भेदभाव करते थे, जिससे वे अक्सर अकेलापन महसूस करते थे। कई डॉक्टरों ने कहा कि यह सर्जरी जोखिम भरी हो सकती है क्योंकि यह जुड़वा अंग हृदय से रक्त संचार साझा कर सकता था। इस डर से वे अपनी पढ़ाई भी 8वीं के बाद जारी नहीं रख सके।

आखिरकार, एक रिश्तेदार की सलाह पर उन्होंने एम्स में संपर्क किया। यहां विशेषज्ञों की टीम ने तुरंत उनकी जांच शुरू की और उन्नत परीक्षणों के बाद पाया कि परजीवी जुड़वां का रक्त संचार एक दुर्लभ धमनी (इंटरनल मैमरी आर्टरी) से जुड़ा था, जिससे सर्जरी और भी जटिल हो गई। इसके अलावा, उनके पेट में एक बड़ा सिस्टिक ट्यूमर भी पाया गया।

ऐतिहासिक सर्जरी

डॉक्टरों ने कई बैठकें और तैयारी के बाद 8 फरवरी 2025 को ऑपरेशन करने का फैसला किया।

सर्जरी के दो महत्वपूर्ण चरण:

परजीवी जुड़वां अंग को हटाना:

डॉक्टरों ने परजीवी पैर के आधार पर गोलाकार चीरा लगाया।

रक्त वाहिकाओं को सावधानीपूर्वक पहचाना और बंद किया गया।

हड्डी को अलग किया गया और अविकसित जननांगों को हटाया गया।

पेट से बड़े ट्यूमर को निकालना:

पेट में चीरा लगाकर ट्यूमर को सावधानीपूर्वक अलग किया गया।

यह ट्यूमर पेट की दीवार, आंत और लिवर से जुड़ा हुआ था।

डॉक्टरों ने यह भी पाया कि मोहित का मूत्राशय सामान्य से ऊंचा, नाभि तक फैला हुआ था, जिसे सर्जरी के दौरान ठीक किया गया।

पेट में ट्यूमर हटाने के बाद वहां एक सर्जिकल ड्रेन लगाया गया और टांकों से घाव को बंद किया गया।

नया जीवन, नई उम्मीद

ऑपरेशन के अगले ही दिन मोहित ने खाना शुरू कर दिया और तीसरे दिन सर्जिकल ड्रेन हटा दिया गया। चौथे दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

पहली बार उन्होंने खुद को हल्का महसूस किया, लेकिन शुरुआत में उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी भी उस जुड़वां अंग को महसूस कर सकते हैं। उनके परिवार ने खुशी से आंसू बहाए और कहा कि अब उनका बेटा एक सामान्य जीवन जी सकेगा।

सफलता की कहानी – टीमवर्क का कमाल

इस जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम में शामिल थे:
मुख्य सर्जन डॉ. असुरी कृष्णा और उनकी टीम – डॉ. वी.के. बंसल, डॉ. सुशांत सोरेन, डॉ. बृजेश कुमार सिंह, डॉ. अभिनव कुमार, डॉ. जयमीन मकवाना (सर्जिकल डिसिप्लिन्स विभाग), डॉ. मनीष सिंघल, डॉ. सशांक (प्लास्टिक सर्जरी विभाग), डॉ. गंगा प्रसाद, डॉ. राकेश (एनेस्थीसिया विभाग), और डॉ. अतिन व डॉ. अंकिता (रेडियोलॉजी विभाग)।

यह सर्जरी चिकित्सा जगत में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह दिखाती है कि आधुनिक विज्ञान और विशेषज्ञता की बदौलत असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। मोहित की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो जन्मजात बीमारियों से जूझ रहे हैं।

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