फिटनेस और हेल्थ के प्रति बढ़ती जागरूकता ने बाजार में एक नया ट्रेंड खड़ा कर दिया है — प्रोटीन-समृद्ध खाद्य उत्पाद। अब दही, ब्रेड, कॉफी, चॉकलेट, आइसक्रीम, यहां तक कि पिज्जा और शराब में भी अतिरिक्त प्रोटीन मिलाया जा रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या ये “हाई-प्रोटीन” टैग वाकई हमारे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, या फिर यह सिर्फ एक मार्केटिंग हथकंडा बन गया है?
प्रोटीन: शरीर के लिए जरूरी, लेकिन कितना?
प्रोटीन शरीर के लिए एक अनिवार्य पोषक तत्व है। यह मांसपेशियों की मरम्मत, एंजाइम उत्पादन, हार्मोन बैलेंस, और इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाए रखने के लिए जरूरी है। वर्तमान पोषण मानकों के अनुसार, एक औसत वयस्क को प्रति किलोग्राम शरीर के वजन पर लगभग 0.75 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। यानी 60 किलो के व्यक्ति को लगभग 45 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन चाहिए।
हालांकि कई पोषण विशेषज्ञ अब मानते हैं कि यह मात्रा अपर्याप्त हो सकती है, विशेष रूप से बुजुर्गों, एथलीट्स और शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों के लिए। वे इसे बढ़ाकर 1.2 से 1.6 ग्राम प्रति किलोग्राम तक सुझा रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा लेना जरूरी है, लेकिन सवाल यह है कि प्रोटीन की गुणवत्ता, स्रोत और समय क्या है।
बाजार में प्रोटीन युक्त उत्पादों की बाढ़
मल्टीनेशनल कंपनियों और स्टार्टअप ब्रांड्स ने उपभोक्ताओं की इसी जरूरत और ट्रेंड को भुनाते हुए तरह-तरह के प्रोटीन युक्त उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं:
हाई प्रोटीन योगर्ट: एक सामान्य दही की तुलना में दो से तीन गुना अधिक प्रोटीन।
प्रोटीन ब्रेड: रोटी या ब्रेड के हर स्लाइस में अतिरिक्त प्रोटीन।
प्रोटीन कॉफी और पेय पदार्थ: जिनमें मट्ठा प्रोटीन (whey protein) या सोया प्रोटीन मिलाया गया होता है।
स्नैक्स और चॉकलेट: जिन्हें “हेल्दी” बताकर बेचा जाता है, जबकि इनमें अक्सर उच्च मात्रा में चीनी, फैट और कैलोरी होती है।
क्या है विशेषज्ञों की राय?
इंडियन एक्सप्रेस में पब्लिश एक रिपोर्ट में
डॉ. अनूप मिश्रा, वरिष्ठ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, के अनुसार, “प्रोटीन का सेवन जरूरी है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर फूड में मिलाया गया प्रोटीन आपके शरीर को फायदा ही पहुंचाए।” उन्होंने कहा कि कई बार बाजार में उपलब्ध हाई-प्रोटीन उत्पादों में छिपी हुई चीनी, सैचुरेटेड फैट और अन्य एडिटिव्स शामिल होते हैं, जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस रिपोर्ट में डाइटिशियन रिचा शर्मा कहती हैं, “लोग सोचते हैं कि ज्यादा प्रोटीन मतलब ज्यादा हेल्थ, लेकिन यह सच नहीं है। प्रोटीन की आवश्यकता व्यक्ति की उम्र, लिंग, स्वास्थ्य स्थिति और शारीरिक गतिविधि पर निर्भर करती है। जरूरत से ज्यादा प्रोटीन, खासकर सप्लिमेंट के रूप में लिया गया, गुर्दों पर दबाव डाल सकता है।”
प्राकृतिक स्रोत बनाम प्रोसेस्ड प्रोटीन
प्रोटीन की आपूर्ति के लिए प्राकृतिक स्रोतों को प्राथमिकता देना हमेशा बेहतर होता है:
शाकाहारी स्रोत: दालें, चना, राजमा, सोया, पनीर, दूध, दही, मूंगफली।
मांसाहारी स्रोत: अंडे, चिकन, मछली, अंडे का सफेद भाग।
प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाला प्रोटीन शरीर द्वारा आसानी से पचाया और उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे आयरन, कैल्शियम और फाइबर भी मिलते हैं।
सावधानी और संतुलन है ज़रूरी
अगर आप प्रोटीन युक्त कोई पैक्ड प्रोडक्ट खरीद रहे हैं, तो जरूरी है कि लेबल पढ़ें, उसमें प्रोटीन की मात्रा, शुगर लेवल, फैट कंटेंट और कैलोरी की जांच करें। साथ ही ये भी ध्यान दें कि उत्पाद किस स्रोत से प्रोटीन प्राप्त कर रहा है — यह प्राकृतिक है या आर्टिफिशियल एडिटिव?
प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की बढ़ती लोकप्रियता ने उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक तो किया है, लेकिन इसके साथ भ्रम और गलत धारणाएं भी बढ़ी हैं। प्रोटीन जरूरी है, लेकिन हर प्रोटीन युक्त उत्पाद स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता। अपने शरीर की जरूरतों को समझकर, संतुलित आहार और प्राकृतिक स्रोतों से प्रोटीन लेना सबसे बेहतर तरीका है।
रिपोर्ट साभार: इंडियन एक्सप्रेस, स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित
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