spinal muscular atrophy

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) जैसी दुर्लभ और जानलेवा बीमारी की दवा रिसडिप्लाम (Risdiplam) की कीमत भारत में चीन और पाकिस्तान की तुलना में काफी अधिक होने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। अदालत ने केंद्र सरकार और दवा निर्माता कंपनी F. Hoffmann-La Roche Ltd. (रोश) से जवाब तलब किया है कि भारत में यह दवा इतनी महंगी क्यों है जबकि पड़ोसी देशों में यह सस्ते दामों पर उपलब्ध है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला तब सामने आया जब केरल की 24 वर्षीय SMA पीड़िता सेबा पी.ए. ने अदालत से वित्तीय सहायता की मांग की। उनके वकील आनंद ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि भारत में रिसडिप्लाम की एक बोतल की कीमत करीब ₹6.2 लाख है, जबकि यही दवा पाकिस्तान में मात्र ₹41,000 और चीन में ₹44,692 में उपलब्ध है। उन्होंने दलील दी कि पाकिस्तान और चीन की सरकारों ने निर्माता कंपनी से बातचीत कर दवा के दाम में कटौती करवाई है, जबकि भारत सरकार इस दिशा में निष्क्रिय रही है।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा के वी विश्वनाथन की पीठ ने r इस पर गंभीर चिंता जताते हुए फार्मा कंपनी रोश को नोटिस जारी कर पूछा की क्या यह दवा पड़ोसी देशों की तरह सस्ती कराई जा सकती है? अदालत ने केंद्र सरकार से भी इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल 2025 को निर्धारित की गई है।

सस्ती दवा की उम्मीद

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में भारतीय दवा कंपनी नैटको फार्मा लिमिटेड को रिसडिप्लाम का उत्पादन सार्वजनिक हित में करने की अनुमति दी है। इससे भारत में इस दवा के जेनेरिक वर्जन की उपलब्धता बढ़ने और कीमत में कमी आने की संभावना है।

SMA, एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है, जिसमें मांसपेशियों की शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। इस बीमारी का इलाज अत्यंत महंगा होता है और भारत में इसके लिए सरकारी सहयोग सीमित है।

आगे की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल 2025 को निर्धारित की है। तब तक केंद्र और रोश दोनों से जवाब मांगा गया है कि वे भारत में मरीजों को राहत देने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं।

यह मामला भारत में जीवनरक्षक दवाओं की कीमत और सुलभता पर एक बार फिर बहस खड़ा कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह उम्मीद जगी है कि SMA जैसी दुर्लभ बीमारियों के इलाज को और सुलभ बनाया जा सकेगा।

रिपोर्ट साभार: इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स हेल्थ

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