आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में गुस्सा आना एक आम बात बन चुकी है। छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन, ट्रैफिक में झुंझलाहट, या ऑफिस के तनाव से उपजा क्रोध… यह सब हमारे मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) के साथ-साथ दिल की सेहत को भी प्रभावित कर रहा है। हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि बार-बार और तीव्र गुस्सा आने से हृदय रोगों का खतरा, विशेषकर Heart Attack की संभावना, कई गुना बढ़ जाती है।
गुस्सा और दिल का संबंध कैसे जुड़ा है?
गुस्सा एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है जो तनाव या असंतोष के समय उत्पन्न होती है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तो शरीर में ‘स्ट्रेस हार्मोन’ जैसे कि एड्रेनालिन और कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। इससे शरीर ‘फाइट या फ्लाइट’ की अवस्था में चला जाता है — ब्लड प्रेशर तेजी से बढ़ता है, दिल की धड़कन तेज हो जाती है और रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं।
इस स्थिति में दिल को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, और यदि यह बार-बार हो, तो दिल की मांसपेशियों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। लंबे समय तक यही स्थिति बनी रहे, तो यह दिल की बीमारियों की नींव रख सकती है।
क्या कहता है रिसर्च?
हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यह पाया गया कि जो लोग अक्सर क्रोधित होते हैं, उनमें हृदय संबंधी बीमारियों का जोखिम लगभग 8 गुना अधिक हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों में जो पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर या अन्य हृदय समस्याओं से ग्रस्त हैं।
अध्ययन में यह भी बताया गया कि गुस्से के दौरान धमनियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है — यानि धमनियाँ सिकुड़ जाती हैं, जिससे हृदय को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। यह स्थिति लगभग 40 मिनट तक बनी रहती है, और यदि यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाए, तो हृदय की दीवारें कमजोर होने लगती हैं।
गुस्से पर नियंत्रण क्यों है ज़रूरी?
भारत में दिल की बीमारियाँ युवाओं में भी बढ़ रही हैं, और विशेषज्ञ मानते हैं कि इसमें जीवनशैली के साथ-साथ भावनात्मक असंतुलन भी बड़ा कारण है। क्रोध केवल एक भाव नहीं, बल्कि शरीर के लिए एक बायोलॉजिकल रिएक्शन है जो पूरे कार्डियोवेस्कुलर सिस्टम को अस्थिर कर सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव
गहरी सांस लेना और श्वास तकनीकों (प्राणायाम) का अभ्यास करने से मानसिक संतुलन बना रहता है।
नियमित ध्यान और योग से आत्म-नियंत्रण बढ़ता है और तनाव से राहत मिलती है।
मन की बात कह देना – अगर कोई बात परेशान कर रही है तो उसे साझा करने से मन हल्का होता है और गुस्सा भीतर नहीं पनपता।
सोशल मीडिया से दूरी – अधिक समय ऑनलाइन रहने से चिड़चिड़ापन और आक्रोश की भावना बढ़ सकती है।
क्या करें जब गुस्सा आए?
तुरंत प्रतिक्रिया देने की बजाय 10 सेकेंड रुकें, गहरी सांस लें और फिर सोचें।
उस क्षण से ध्यान हटाने के लिए चलना शुरू करें या पानी पी लें।
बाद में उस स्थिति का तटस्थ विश्लेषण करें कि क्या यह गुस्से लायक था?
अगर गुस्सा आदत बन गया है, तो किसी मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना फायदेमंद हो सकता है।
मेडलार्ज सुझाव:
हर किसी को कभी न कभी गुस्सा आता है, लेकिन अगर यह आदत बन जाए या बार-बार तीव्र रूप में प्रकट हो, तो यह न केवल आपके रिश्तों को बिगाड़ता है बल्कि आपके दिल को भी खामोशी से नुकसान पहुंचाता है। गुस्से को काबू में रखना केवल एक मानसिक कला नहीं है, यह एक जरूरी स्वास्थ्य आदत है।
तो अगली बार जब आपको लगे कि गुस्सा आने वाला है, तो यह सोचिए – “क्या यह मेरी सेहत के लिए सही है?” शायद यही सवाल आपको शांत कर दे।
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