दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में हाल के दिनों में जोड़ों के दर्द की शिकायत लेकर आ रहे बच्चों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि यह समस्या अक्सर जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (JIA) से जुड़ी होती है, लेकिन इस बीमारी की समय पर पहचान नहीं हो पाने के कारण बच्चों को दीर्घकालिक जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (JIA)?
JIA बच्चों में होने वाला सबसे आम ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही जोड़ों पर हमला करने लगती है। 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों में यह रोग छह सप्ताह से अधिक समय तक रहने वाले जोड़ों के दर्द, सूजन और अकड़न के रूप में सामने आता है। कुछ मामलों में आंखों में सूजन (uveitis) भी इसका हिस्सा हो सकती है।
यदि इस बीमारी का समय पर इलाज न हो, तो यह स्थायी जोड़ों की क्षति और विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है।
समस्या कहाँ है? – देर से पहचान और गलत निदान
डॉक्टरों के अनुसार, JIA की शुरुआती लक्षण बेहद सामान्य होते हैं — जैसे जोड़ों का दर्द, सूजन या चलने में तकलीफ। इन लक्षणों को माता-पिता या सामान्य चिकित्सक अक्सर मांसपेशियों में खिंचाव या चोट मान लेते हैं। इससे बच्चों को शुरुआत में ऑर्थोपेडिक डॉक्टरों के पास ले जाया जाता है, और सही समय पर रूमैटोलॉजिस्ट से परामर्श नहीं हो पाता।
AIIMS में पीडियाट्रिक रह्यूमटोलजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ पंकज हरि और एडिशनल प्रो डॉ नरेंद्र बागरी ने कहा, “शुरुआती लक्षणों की अस्पष्टता के कारण कई मामलों में निदान में महीनों की देरी हो जाती है, जिससे बच्चों की हालत और बिगड़ जाती है।”
समय पर इलाज क्यों है ज़रूरी?
लंबे समय तक सूजन रहने से जोड़ों में स्थायी क्षति हो सकती है।
आंखों में सूजन से दृष्टि हानि का भी खतरा रहता है।
मनोवैज्ञानिक असर – लगातार दर्द और चलने में कठिनाई बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।
समय रहते इलाज शुरू कर देने से रोग की प्रगति रोकी जा सकती है और बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है।
माता-पिता और डॉक्टरों के लिए सुझाव
डॉ पंकज हरि ने बताया की यदि बच्चा लगातार जोड़ों के दर्द या सूजन की शिकायत करता है और लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक बने रहते हैं, तो उसे नजरअंदाज न करें।
तुरंत किसी बाल रूमैटोलॉजिस्ट से संपर्क करें।
आंखों की नियमित जांच भी ज़रूरी है, क्योंकि JIA से आंखों पर भी असर पड़ सकता है।
AIIMS के विशेषज्ञों के अनुसार, “यदि प्राथमिक डॉक्टर समय पर संदिग्ध मामलों को रूमैटोलॉजिस्ट के पास भेजें तो बड़ी संख्या में बच्चों को होने वाले दीर्घकालिक नुकसान से बचाया जा सकता है।”
AIIMS में बच्चों में जोड़ों की बीमारियों की बढ़ती संख्या यह संकेत देती है कि जागरूकता और प्रारंभिक पहचान ही बचाव का सबसे बड़ा माध्यम है। माता-पिता और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को मिलकर इस दिशा में काम करने की जरूरत है, ताकि बच्चों को दर्दमुक्त और स्वस्थ जीवन मिल सके।
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