इंटरनेट पर एक बड़ी बहस छिड़ी है की क्या ऑफिस के टेंपरेचर सेटिंग का असर महिलाओं के प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है? क्या पुरुष और महिला दोनों के लिए तापमान की सेटिंग अलग अलग होनी चाहिए?कई ऑफिसों में थर्मोस्टेट सेटिंग्स ऐसे मानकों पर आधारित हैं, जो 1960 के दशक में बनाए गए थे।
उस दौर में तापमान निर्धारण पुरुष कर्मचारियों की औसत शारीरिक गतिविधि और मेटाबॉलिक दर को ध्यान में रखकर किया गया था। महिलाओं के लिए यह दर अक्सर कम होती है, लेकिन मानकों में इसका ध्यान नहीं रखा गया। नतीजतन, ऑफिस का वातावरण सामान्य से ठंडा महसूस होता है।
महिलाओं पर असर
वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि जब ऑफिस का तापमान महिलाओं के लिए बहुत ठंडा होता है, तो इसका सीधा असर उनकी कार्यक्षमता पर पड़ सकता है। असुविधा के कारण ध्यान भटकता है और कार्य-गति भी प्रभावित होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, ठंडे माहौल में महिलाओं की उत्पादकता पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रभावित होती है।
उत्पादकता और ऊर्जा दक्षता का संबंध
यह मुद्दा केवल आराम या सुविधा तक सीमित नहीं है। रिसर्च बताती है कि तापमान का सीधा असर उत्पादकता पर पड़ता है। अगर ऑफिस वातावरण सभी कर्मचारियों के लिए संतुलित रखा जाए, तो न केवल कार्य-प्रदर्शन बेहतर होता है, बल्कि ऊर्जा की खपत भी अधिक कुशल तरीके से की जा सकती है।
बदलाव की जरूरत
विशेषज्ञ मानते हैं कि कार्यस्थलों पर तापमान नीति (thermostat policy) को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है। इसमें महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग शारीरिक जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए। इससे न केवल उत्पादकता में सुधार होगा, बल्कि कार्यस्थल और भी समावेशी और सहयोगी बन पाएगा।
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