Covid 19 death

महामारी के बाद जीवन की उम्मीद जरूर लौट रही है लेकिन युवाओं में बढ़ते मौत के आंकड़ों ने दुनिया को एक नए संकट की ओर धकेल दिया है। Covid-19 महामारी के बाद दुनिया की औसत जीवन प्रत्याशा अब फिर से महामारी-पूर्व स्तर पर लौट रही है। वैश्विक स्वास्थ्य अध्ययन के अनुसार, 2023 तक महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 76.3 वर्ष और पुरुषों की 71.5 वर्ष दर्ज की गई है।

महामारी के चरम के दौरान यह आंकड़ा कई देशों में दो से तीन वर्ष तक गिर गया था। अब वैक्सीनेशन, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ और महामारी से सीखे सबक इस रिकवरी के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।

लेकिन इस अच्छी खबर के बीच एक गंभीर चिंता भी उभर रही है — किशोरों और युवाओं में बढ़ती मौतें, जो अब एक नई सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी हैं।

युवाओं में मौतें क्यों बढ़ रही हैं?

Times of India की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अध्ययन में यह सामने आया है कि 10 से 29 वर्ष की आयु वर्ग में मौतों की दर में तेज़ी आई है।
जहाँ बुजुर्गों और मध्यम आयु वर्ग में मृत्यु दर में गिरावट देखी जा रही है, वहीं युवा आबादी की स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है।

इस बढ़ते ट्रेंड के पीछे कई वजहें हैं —

मानसिक स्वास्थ्य की गिरावट: महामारी ने युवाओं में अकेलेपन, तनाव और चिंता की दर को बढ़ा दिया।

आत्महत्या और नशीली दवाओं का दुरुपयोग: अमेरिका, लैटिन अमेरिका और यूरोप में ड्रग ओवरडोज़ और आत्महत्या के मामलों में तेजी आई है।

हिंसा और सड़क दुर्घटनाएँ: विकासशील देशों में असुरक्षित सड़कों और सामाजिक हिंसा की घटनाएँ मृत्यु का बड़ा कारण बन रही हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी: निम्न-आय वाले देशों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ अभी भी युवाओं के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों की स्वास्थ्य नीतियाँ मुख्य रूप से बुजुर्गों पर केंद्रित हैं, जबकि युवा-केन्द्रित स्वास्थ्य ढांचा अब भी कमजोर है।

“अगर अभी नहीं चेते, तो स्थिति और बिगड़ेगी”

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि “अगर सरकारें और नीति निर्माता अब युवाओं की ओर ध्यान नहीं देते, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या एक ‘साइलेंट हेल्थ क्राइसिस’ का रूप ले सकती है।”

अध्ययन में यह भी बताया गया है कि महामारी के बाद से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक युवाओं की पहुँच बेहद सीमित रही है। स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग सुविधाएँ या तो बंद हो गईं या डिजिटल संक्रमण के दौरान कमजोर पड़ीं।

एक विशेषज्ञ के शब्दों में, “हमने बुजुर्गों को बचाने में सफलता पाई, लेकिन युवाओं को खो रहे हैं।”

महामारी ने बदली प्राथमिकताएँ

महामारी के दौरान संसाधन मुख्य रूप से कोविड-19 नियंत्रण और वृद्ध आबादी की सुरक्षा पर लगाए गए।
नतीजतन, किशोर और युवा स्वास्थ्य कार्यक्रमों की रफ्तार धीमी पड़ी — नशा मुक्ति, मानसिक स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य और शिक्षा-संबंधी योजनाएँ पीछे छूट गईं।

अब जब जीवन प्रत्याशा के आंकड़े सुधर रहे हैं, तो विशेषज्ञों का कहना है कि अगर युवाओं की मौतों को नहीं रोका गया, तो यह सुधार अधूरा रहेगा।

आगे की राह: क्या बदलना होगा?

रिपोर्ट और विशेषज्ञों ने कुछ ठोस सुझाव दिए हैं —

  1. युवा-केंद्रित स्वास्थ्य नीति: मानसिक स्वास्थ्य, ड्रग-अब्यूज, हिंसा-रोकथाम और रोड-सेफ्टी को हेल्थ मिशन का हिस्सा बनाया जाए।
  2. स्कूल और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: काउंसलिंग सेल और हेल्पलाइन को सक्रिय करना जरूरी है।
  3. डेटा सिस्टम को मजबूत करना: युवाओं की मौतों के कारणों पर विश्वसनीय डेटा इकट्ठा कर नीति-निर्माण में उपयोग किया जाए।
  4. सामाजिक संवाद और कलंक-मुक्त दृष्टिकोण: मानसिक स्वास्थ्य या नशे पर बात करना ‘टैबू’ नहीं बल्कि ‘ट्रीटमेंट’ का हिस्सा बने।
  5. वैश्विक सहयोग: कम आय वाले देशों में युवाओं के लिए स्वास्थ्य निवेश और संसाधन बढ़ाए जाएँ।

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