नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (N-DOC), फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल, और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) ने भारतीयों के लिए मोटापे की नई परिभाषा जारी की है। यह परिभाषा द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी में प्रकाशित वैश्विक गाइडलाइन्स के साथ तालमेल पर आधारित है।
पुरानी परिभाषा क्यों बदली गई?
2009 में मोटापे की परिभाषा सिर्फ बॉडी मास इंडेक्स (BMI) पर आधारित थी। लेकिन हाल के शोध में पता चला है कि BMI अकेले मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों की सटीक पहचान के लिए पर्याप्त नहीं है। खासतौर पर भारतीयों में पेट के आसपास चर्बी (एब्डोमिनल ओबेसिटी) का असर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है।
नई गाइडलाइन्स की मुख्य बातें
- पेट की चर्बी पर जोर: भारतीयों में पेट की चर्बी और इंसुलिन प्रतिरोध के बीच सीधा संबंध पाया गया है। इसे अब मोटापे की पहचान में प्राथमिक कारक माना गया है।
- सह-रोगों को शामिल किया गया: डायबिटीज, हृदय रोग जैसे सह-रोगों को भी मोटापे के वर्गीकरण में शामिल किया गया है।
- मोटापे से जुड़ी यांत्रिक समस्याएं: घुटनों और कूल्हों की समस्याएं या सांस लेने में कठिनाई को भी मोटापे के प्रभाव में गिना गया है।
दो चरणों में मोटापे का वर्गीकरण
नई परिभाषा के अनुसार मोटापे को दो चरणों में बांटा गया है:
- चरण 1 मोटापा:
BMI 23 किलोग्राम/मीटर² से अधिक।
कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं, लेकिन भविष्य में जोखिम।
- चरण 2 मोटापा:
BMI 23 किलोग्राम/मीटर² से अधिक।
पेट की अतिरिक्त चर्बी और स्वास्थ्य समस्याएं जैसे डायबिटीज या हड्डियों की समस्या।
शोध की प्रक्रिया
यह अध्ययन अक्टूबर 2022 से जून 2023 के बीच डेल्फी पद्धति का उपयोग करके किया गया। इसमें डॉक्टर, सर्जन, फिजियोथेरेपिस्ट और न्यूट्रिशनिस्ट शामिल थे।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. अनुप मिश्रा (पद्मश्री), फोर्टिस सी-डॉक के डायबिटीज एवं एंडोक्राइनोलॉजी निदेशक, ने कहा:
“भारत में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। ये गाइडलाइन्स सरल और प्रभावी हैं, जो शुरुआती चरण में मोटापे को नियंत्रित करने में मदद करेंगी।”
डॉ. नवल विक्रम, एम्स, ने कहा:
“भारतीयों के लिए मोटापे की स्पष्ट परिभाषा जरूरी थी। यह अध्ययन शुरुआती पहचान और लक्षित उपचार की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
निष्कर्ष
यह नई परिभाषा और वर्गीकरण भारतीय आबादी की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं। इन गाइडलाइन्स का उद्देश्य मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों को समय रहते पहचानना और उनका प्रभावी प्रबंधन करना है।
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