Health Insurance

भारत में स्वास्थ्य बीमा तेजी से बढ़ा है, लेकिन महंगे प्रीमियम, कैशलेस विवाद और पारदर्शिता की कमी उपभोक्ताओं को संकट में डाल रही है।

स्वास्थ्य बीमा का बढ़ता आकार

भारत में स्वास्थ्य बीमा सेक्टर ने हाल के वर्षों में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की है। 2024 में गैर-जीवन बीमा कंपनियों ने ₹1 ट्रिलियन से ज़्यादा प्रीमियम इकट्ठा किया। यह वृद्धि स्वास्थ्य सुरक्षा की बढ़ती ज़रूरत को दर्शाती है। लेकिन इस विस्तार के साथ कई गंभीर चुनौतियाँ भी सामने आई हैं—महंगे प्रीमियम, दावों में अस्वीकृति, कैशलेस इलाज की दिक्कतें और नियामकीय पारदर्शिता की कमी।

प्रीमियम में लगातार बढ़ोतरी

मेडिकल महंगाई और महंगे उपचारों ने बीमा प्रीमियम को हर साल और भारी बना दिया है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में 2020 के बाद से प्रीमियम 70% तक बढ़ चुके हैं। महंगाई का यह दबाव बीमाधारकों के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है।

कैशलेस इलाज की समस्या और ताज़ा विवाद

कैशलेस सुविधा बीमा का सबसे अहम हिस्सा मानी जाती है। इसमें मरीज को अस्पताल में पैसा तुरंत नहीं देना पड़ता और बिल सीधे बीमा कंपनी चुकाती है। लेकिन व्यवहार में यह सुविधा अक्सर विवादों में घिर जाती है।

हाल ही में Niva Bupa Health Insurance ने Max Hospital के साथ कैशलेस सुविधा बंद कर दी, जिससे बड़ी संख्या में मरीज प्रभावित हुए। कई बीमाधारकों को अचानक कैशलेस क्लेम से वंचित कर दिया गया और इलाज के लिए अपनी जेब से भारी रकम चुकानी पड़ी। यह विवाद दिखाता है कि बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच खींचतान का खामियाज़ा सीधे मरीजों को भुगतना पड़ता है।

नियामक और उपभोक्ता चुनौतियाँ

IRDAI और बीमा लोकपाल (Ombudsman) जैसी संस्थाओं के बावजूद उपभोक्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिल पा रही।
कई बार कैशलेस रिजेक्शन की वजह स्पष्ट नहीं बताई जाती।
क्लेम सेटलमेंट में महीनों की देरी होती है। कुछ कंपनियों के खिलाफ शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

सुधार की दिशा
कैशलेस गारंटी: नेटवर्क अस्पतालों में बीमाधारकों को कैशलेस सुविधा से वंचित करना पूरी तरह रोका जाए।
प्रीमियम कैप: सालाना बेतहाशा प्रीमियम वृद्धि पर सीमा तय की जाए।
पारदर्शिता: हर क्लेम रिजेक्शन या कैशलेस अस्वीकार पर लिखित कारण अनिवार्य हो।
डिजिटल निगरानी: राष्ट्रीय स्तर का क्लेम पोर्टल, जहां बीमाधारक रीयल-टाइम स्टेटस देख सकें और अस्पताल/बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय हो।

समावेशी कवरेज: OPD, दवाइयाँ और प्रिवेंटिव केयर को भी शामिल किया जाए।
भारत में स्वास्थ्य बीमा तेजी से बढ़ा है, लेकिन Niva Bupa–Max Hospital जैसे हालिया कैशलेस विवाद इस क्षेत्र की खामियों को उजागर करते हैं। महंगे प्रीमियम, पारदर्शिता की कमी और उपभोक्ताओं की सुरक्षा का अभाव इसे “सुरक्षा कवच” से ज्यादा “चिंता का बोझ” बना रहे हैं। अगर नियामक संस्थाएँ और बीमा कंपनियाँ मिलकर सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाएँ, तो ही यह सेक्टर आम लोगों के लिए भरोसेमंद साबित हो पाएगा।

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