पारस अस्पताल, गुरुग्राम में एक ऐसी महिला और उसके बच्चे की जान बचाई गई है, जो एक गंभीर प्रेग्नेंसी कंडीशन से पीड़ित थी. इस बीमारी को प्लेसेंटा या परक्रेटा के नाम से जाना जाता है. इस महिला मरीज का केस कॉम्प्लिकेटेड होने के साथ-साथ घातक भी था क्योंकि उसकी नाल गर्भाशय और मूत्राशय की दीवार में बहुत गहराई तक उग चुकी थी. प्लेसेंटा परक्रेटा एक दुर्लभ कंडीशन होती है. यह 1000 प्रेग्नेंसी में केवल 3 प्रेग्नेंसी में ही देखी जाती है. खून की कमी होने से बचने के लिए और बच्चे को बचाने के लिए सर्जिकल रिमूवल के बाद प्रारंभिक सी-सेक्शन डिलीवरी हुई और मां बच्चे को बचा लिया गया.
इस केस के बारे में बात करते हुए पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम की आब्सटेट्रिक्स एंड एआरटी, सेंटर फॉर मिनिमली इनवेसिव गाय्नेकोलोजी की हेड डॉ. अलका कृपलानी ने कहा कि सामान्यतौर पर नाल (प्लेसेंटा) बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय की दीवार से अलग होती है. लेकिन प्लेसेंटा एक्स्ट्रेटा होने से प्लेसेंटा या इसका कुछ भाग अलग हो जाता है, इससे बच्चे की डिलीवरी के बाद बहुत ज्यादा खून बहता है और ऐसी स्थिति में मां की मौत की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में यह भी संभव है कि प्लेसेंटा गर्भाशय की मांसपेशी में घुस जाए या गर्भाशय की दीवार से उग आए.
इस कंडीशन को प्रेगनेंसी के दौरान डायगनोज्ड किया जाता है, इसलिए गर्भाशय के सर्जिकल रिमूवल (हिस्टेरेक्टॉमी) के बाद सी-सेक्शन डिलीवरी को परफार्म किया जाता है. डॉक्टर ने बताया कि इस प्रक्रिया को सिजेरियन हिस्टेरेक्टॉमी भी कहा जाता है और इससे ज्यादा खून का बहना रोका जाता है. ज्यादा खून तब बहता है, जब प्लेसेंटा को अलग किया जाता है. इस मामले में डिलीवरी के बाद मरीज को एक दिन के लिए आईसीयू में रखा गया था, जिसके बाद मरीज की कंडीशन में काफी सुधार हुआ. डॉ. कृपलानी ने कहा कि हम सफलतापूर्वक डिलीवरी के बाद बच्चे के साथ मां को इस खतरनाक कंडीशन से निकालकर खुश हैं.
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