दिल बहुत हीं नाजुक चीज होती है दोस्तों। अगर ये बीमार हो जाए तो मिनटों में हमारा काम तमाम हो जाता है। हमने एक “युवा माँ के छोटे-छोटे बच्चों को” यतीम होने बचा लिया लेकिन कैसे?

पहले दिल के बीमारी को व्यक्ति की अमीरी से जोड़कर देखा जाता था, शायद इसलिए क्योंकि ऐसे लोग आरामपसंद होने के साथ-साथ जिस तरह के खान-पान और रहन-सहन की दिनचर्या का पालन किया करते थे वो स्वस्थ हृदय के लिए हानिकारक था।

लेकिन वक़्त बदलने के साथ-साथ हमारे देश के सर्व-समाज के लोगों ने पश्चात जीवन-शैली को अपनाकर हृदय घातक को अपना मित्र बना लिया है। हमारे जीवन में मशीनों की दखल-अंदाजी रोज बढ़ती जा रही है और हम शारिरिक श्रम करने के बदले मशीनों के गुलाम बनते जा रहे हैं।

हमारी जीवनशैली बदलने के साथ-साथ हमारे देश में फैली गरीबी, अशिक्षा और हमारी स्वास्थ के प्रति संवेदनहीनता ने भी हमें केंसर और हृदय जैसी बीमारियाँ उपहार में झोली भरकर देना शुरू कर दिया है। कभी बिरले भारतीयों को होनेवाली बीमारियाँ आज घर-घर में फैल गयी हैं और ये आम भारतीयों के मौत की सबसे बड़ी वजह बन गयी है।

इन सबके साथ-साथ गलाकाट प्रतियोगिता की वजह से जीवन में बढ़ता तनाव, मिलावटी खान-पान की भोजन में प्रचुरता, फ्राइड फ़ूड, प्रोसेस्ड फ़ूड और फ़ास्ट फ़ूड के प्रति बढ़ता लगाव, शारिरिक श्रम/व्यायाम से दूर भागना, वायु प्रदूषण, युवाओं में बढ़ते “पीयर प्रेसर” की वजह से बढ़ता शराब, सिगरेट और तंबाकू सेवन का क्रेज तथा सरकार की इस संबंध में उदासीनता, आग में घी डालने का कार्य कर रहा है।

आलम यह है कि अमीरों, ज्यादातर पुरुषों और बुजुर्गों की ये बीमारियाँ अब गरीबों, महिलाओं और युवाओं के मौत की सबसे महत्वपूर्ण वजह बनती जा रही है।

अबतक चिकित्सकों-वैज्ञानिकों में यह अवधारणा थी कि महिलाओं को जबतक रजस्वला (पीरियड) होता है तबतक वो हृदय के गभीर बीमारियों से बची रहती हैं। लेकिन अब ये अवधारणा भी टूटती नजर आ रही है।

कल ऐसी हीं एक 35 वर्षीय महिला के जान बचाने का अवसर प्राप्त हुआ। वो कुछ कदम भी बिना सीना, जबरे और दोनों हाथों में असह्य दर्द के चल नहीं पा रही थी, जो उनके अंदर छुपे गंभीर हृदय की बीमारी होने की तरफ इशारा कर रहा था।

उनकी निजी अस्पताल में इसी वजह से एंजियोग्राफी जांच की गई थी जिसमें अतिगंभीर बीमारी निकली थी जिनका इलाज उनके यहाँ कर पाना मुश्किल था इसलिए मेरे पास भेज दिए गए थे।

मेरे लिए भी एक युवा महिला जो न तो तंबाकू का सेवन करती थी, न हीं सुगर की बीमारी से ग्रसित थी, न उनके परिवार के किसी अन्य सदस्यों में हृदय के इस तरह के गंभीर बीमारी की कोई हिस्ट्री थी और न हीं उनके खून की नालियों में सूजन होने की कोई वजह प्रतीत हो रही थी, आश्चर्यजनक था।

एंजियोग्राफी जांच में उनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जहां से शुरू होती है वहीं बिल्कुल चिपककर धागे जैसी हो गई दिख रही थी। इस तरह की हृदय की बीमारी को सबसे गंभीर माना जाता है और ऐसे हीं लोग खाते-पीते, चलते-फिरते अचानक से हृदय आघात से असमय मौत के शिकार हो जाते हैं।

बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इसके दो हीं इलाज संभव थे, या तो इनका ओपन हार्ट (बाईपास) सर्जरी करना पड़ता, जो उम्र के हिसाब, अस्पताल में भर्ती रहने के दिनों, खर्च के हिसाब और खतरे के हिसाब सबमें महँगा पड़ता, या फिर इनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जो 95% के आसपास सिकुड़ी हुई थी उसे हाथ/पैरों के नसों में सुई डालकर फुला दिए जाए और उसमें छल्ले/स्टेंट डाल दिये जाए, जिसे हम एंजियोप्लास्टी कहते हैं जिसके 1-2 बाद हीं मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाते हैं वो भी बिना किसी चीर-फाड़ के और मात्र 50 हज़ार की खर्च पर!

हमने गहन विचार-विमर्श के बाद इनके एंजियोप्लास्टी करने का निर्णय लिया, जो वाकई चुनौतीपूर्ण कार्य था। उनके हृदय के नस की स्थिति ऐसी थी कि उसमें पहले तो एंजियोप्लास्टी में उपयोग करने के लिए डाली जानेवाली तार और बैलून डालना हीं मुश्किल हो रहा था। फिर नसों की स्थिति ऐसी थी कि छल्ला डालने के बाद उसको कहाँ रक्खा जाए यह निर्धारित करना भी काफी चुनौती पूर्ण था, क्योंकि इस प्रक्रिया में हुई थोड़ी सी भी चूक मरीज की मिनटों में जान ले सकती है।

बहरहाल सभी चुनौतियों को मात देकर हमलोग मरीज की जान बचाने में सफल हुए। धागे जैसी दिखनेवाली नस को हमने सभी नसों से मोटी बना दी।

इस ऑपरेशन में हमारा साथ निभाने वाले टीम के सभी सदस्यों का दिल से आभार, क्योंकि उनके बगैर इस तरह का ऑपरेशन करना असंभव है।

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