Parkinson Medlarge

पार्किंसन डिज़ीज़—एक ऐसी न्यूरोलॉजिकल स्थिति जिसे अब तक लाइलाज माना जाता रहा है। यह बीमारी धीरे-धीरे व्यक्ति की गतिशीलता, संतुलन और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करती है। लेकिन अब विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे नए शोध इस स्थिति को बदल सकते हैं। स्टेम सेल और जीन थेरेपी के जरिए इस असाध्य रोग पर विजय पाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

Parkinson रोग: जब शरीर दिमाग की बात नहीं मानता
पार्किंसन रोग मस्तिष्क की डोपामाइन उत्पादक कोशिकाओं के नष्ट होने से होता है। डोपामाइन एक ऐसा न्यूरोट्रांसमीटर है जो शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। जब इसकी मात्रा कम हो जाती है, तो चलना, बोलना और लिखना जैसी सामान्य गतिविधियाँ भी कठिन हो जाती हैं।

Stem Cell Therapy: नई कोशिकाओं से पुराने मस्तिष्क को राहत
स्टेम सेल्स शरीर की मूल कोशिकाएं होती हैं जो किसी भी प्रकार की ऊतक कोशिकाओं में बदल सकती हैं। पार्किंसन के इलाज में इनका इस्तेमाल डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स को दोबारा उत्पन्न करने में किया जा रहा है।

प्रमुख तथ्य: इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल्स (iPSC) का उपयोग मरीज की अपनी कोशिकाओं को पुनः प्रोग्राम करके किया जाता है, जिससे रिएक्शन की संभावना कम हो जाती है। इन स्टेम सेल्स को मस्तिष्क में प्रत्यारोपित कर डोपामाइन उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

Gene Therapy: डीएनए में बदलाव से मस्तिष्क को संजीवनी

जीन थेरेपी में मस्तिष्क की कोशिकाओं में विशेष जीन को डाला जाता है, जिससे वे बेहतर कार्य कर सकें। यह थेरेपी दो उद्देश्यों के लिए काम में लाई जा रही है:
1. डोपामाइन उत्पादन को बेहतर बनाना।

2. मस्तिष्क की अन्य सहायक कोशिकाओं की कार्यक्षमता को सुधारना।

हालिया ट्रायल्स में यह तकनीक काफी कारगर साबित हुई है, जहां रोगियों में मोटर फंक्शन में सुधार और दवाओं पर निर्भरता में कमी देखी गई है।

भारत में अनुसंधान और सरकारी प्रोत्साहन
भारत में सेल और जीन थेरेपी को हेल्थकेयर इनोवेशन का अगला चरण माना जा रहा है। प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहयोग से इस दिशा में कई योजनाएं बनाई गई हैं। भारत में दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित करोड़ों लोगों को इन तकनीकों से लाभ मिल सकता है।

नए प्रोजेक्ट्स पर फोकस:
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और DBT के साथ मिलकर नई क्लिनिकल गाइडलाइन्स तैयार की जा रही हैं।
निजी हेल्थटेक कंपनियां और स्टार्टअप्स इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा रहे हैं।

चुनौतियां अब भी हैं, लेकिन उम्मीदें और तेज़ हैं
इन उपचारों की लागत, तकनीकी जटिलता और दीर्घकालिक सुरक्षा को लेकर अभी कई सवाल बाकी हैं। लेकिन वैज्ञानिक समुदाय और चिकित्सा उद्योग इसे भविष्य की ‘गेम चेंजर’ तकनीक मान रहे हैं।

चिकित्सा की नई सुबह
स्टेम सेल और जीन थेरेपी सिर्फ पार्किंसन ही नहीं, बल्कि अनेक दुर्लभ और गंभीर बीमारियों के इलाज में नई उम्मीदें जगा रही हैं। आने वाले वर्षों में यह तकनीक न केवल बीमारी को नियंत्रित करने में, बल्कि उसे जड़ से खत्म करने में भी अहम भूमिका निभा सकती है।

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