कोविड महामारी के दो साल गुजर चुके है और देश तीसरी लहर झेल रहा है।

लेकिन हक़ीक़त ये है की देश के हुक्मरानों ने कोविड के आक्रमण और संहारक दूसरी लहर से भी सीख नही ली।

ओमिक्रोन वैरिएंट से पैदा हुई लहर से बढ़ते हॉस्पिटल लोड को देखते हुये एम्स ने ट्रॉमा सेंटर फिर से बंद कर दिया है। पिछले साल दूसरी लहर के दौरान भी एम्स ट्रॉमा सेंटर को बंद किया गया था और वैकल्पिक व्यवस्था एम्स ईमरजेंसी में शुरू हुई थी लेकिन पर्याप्त इंतजाम न होने के कारण दुर्घटना के शिकार हुई सैकड़ो लोगों को समुचित इलाज के अभाव में दम तोड़ना पड़ा।

इस बार भी जैसे ही एम्स प्रशासन ने ट्रॉमा सेंटर को कोविड केयर सेन्टर बनाने की तैयारी शुरू की एम्स के भीतर ही विरोध शुरू हो गया। मरीजों के इलाज में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले रेसिडेंट डॉक्टर्स के एसोसिएशन ने इस कदम का विरोध किया और साथ ही ये भी सुझाव दिया की एम्स परिसर में तैयार तीन बहुमंजिला इमारते जो खाली पड़ी है उसमें कोविड केअर सेंटर शुरू किया जाये ताकि ट्रॉमा के मरीज प्रभावित नहीं हो लेकिन एम्स प्रशासन ने आरडीए के इस आवश्यक सुझाव को अनदेखा कर दिया और फिर से एम्स ट्रॉमा सेंटर को कोविड केअर सेंटर बना दिया गया।

इसके अलावा एम्स ने कोविड के मौजूदा लहर के मद्देनजर अपनी स्पेशलिटी ओपीडी को भी बंद करने का फैसला किया है, सिर्फ सीमित संख्या में पुराने मरीज़ देखे जाएंगे। हालांकि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के साथ जनरल ओपीडी चालू रहेगी लेकिन रूटीन ऑपेरशन से लेकर एडमिशन तक बंद कर दिया गया है।

ऐसे में सवाल उठता है की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के भारी  बजट से चलने वाले देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान ने कोविड के दूसरे लहर से क्या सीख ली?

पिछले एक साल में कोविड के अगले लहर से निपटने के लिए तैयारी क्यों नही हुई?

हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर बड़ी बड़ी घोषणाएं क्यों ढाक के तीन पात भर रह गयी। ये तमाम ऐसे सवाल है जो न सिर्फ ज्वंलत है बल्कि आम लोगो के स्वास्थ्य के प्रति सरकार की घोर लापरवाही का जीता जागता उदाहरण है। इस देश मे आम आदमी के जान की क्या कीमत है, इस फैसले से समझ सकते हैं।

 डॉ मुनमुन सिंह

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