देश दो सालों से कोरोना से जूझ रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सितरमन के तरफ देश की बेहाल स्वास्थ्य व्यव्स्था बाट जोह रही थी की इस बजट मे कुछ घोषणा की जाएगी। खैर स्वास्थ्य के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई । कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाएं सबकी प्राथमिकताओं में शामिल है, इसलिए हमने बजट 2022 के बहाने डॉक्टरों से ही यह जानने व समझने की कोशिश की है कि इस साल के बजट से सरकार से उनकी क्या क्या अपेक्षाएं हैं और वह आम जनता व खास तबके के साथ साथ इस स्वास्थ्य सिस्टम के लिए कितना जरूरी है।
बजट 2022 में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जगत को सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं इस पर बात करते हुए यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशांबी के कॉरपोरेट रिलेशंस विभाग के प्रमुख गौरव पांडेय ने कहा कि चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा पर बहुत तवज्जो देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर तो हर रोज कभी मरीजों की कमियों से तो कभी रोगों की आक्रामकता से जंग लड़ता है और दुश्मन रूपी बीमारी कभी-कभी ना आ कर के रोज ही सुरसा सा मुंह बाए खड़ी रहती है।
ऐसे में जिनके पास मेडिक्लेम पॉलिसी है या जिनको उनकी कंपनी की तरफ से सरकारी या निजी चिकित्सा सुविधा दिलवाने का प्रावधान है, वह तो अस्पतालों में जाकर आसानी से इलाज करा लेते हैं। लेकिन अधिकतर लोग जो मध्यमवर्गीय या बिलो पावर्टी लाइन में आते हैं, उनको इलाज कराने के लिए बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इस वर्ग के लिए चिकित्सा सुविधाओं को और आगे बढ़ाने की आज जरूरत है।
गौरव पांडेय ने कहा कि सरकार को चाहिए कि पीपीपी मॉडल पर प्राइवेट अस्पतालों से टाइ अप करके और इंश्योरेंस कंपनियों से टाइ अप करके एक नेशनल ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी बने, जिसका प्रीमियम बहुत ही कम हो और जिसका कवरेज ज्यादा से ज्यादा हो। जिससे कि सामान्य बीमारियों का इलाज एवं सर्जरी आसानी से की जा सके। वहीं, गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सरकार पूर्ण रूप से मदद करें।
सरकार को चाहिए कि हर एक सरकारी अस्पताल में मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच पैकेज लागू किया जाए, जिससे 40 वर्ष से अधिक के उम्र के व्यक्ति को कराना आवश्यक हो। साथ ही निजी अस्पतालों के साथ बहुत ही कम रेट पर इसका टाइ अप किया जाए, जिसमें निजी अस्पताल भी खुशी-खुशी देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिए आगे आएं। मोबाइल हेल्थ यूनिट सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हर एक व्यक्ति का चेकअप करे, इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
गौरव पांडेय ने यह भी कहा कि केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना- सीजीएचएस के रेट सन 2014 से अभी तक रिवाइज नहीं किए गए हैं। ऐसे में अस्पतालों की आर्थिक व्यवस्था में असंतुलन हो रहा है। सरकार को चाहिए कि जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और हर चीजों के रेट बढ़ रहे हैं, सरकारी तनख्वाह भी बढ़ रही है, ऐसे में केवल डॉक्टरों और हॉस्पिटलों के साथ रेट ना बढ़ाना उचित नहीं है, विशेषकर बड़े शहरों में। वहीं, दूसरी तरफ हम देखते हैं कि सरकारी अधिकारी हवाई जहाज और पांच सितारा होटलों में रुकते हैं और यदि उनका वह खर्चा देख लें तो आप हतप्रभ रह जाएंगे। लेकिन अस्पतालों के ऊपर खर्च करने के लिए उनके इलाज के रेट इतने कम रखे गए हैं, जो अब छोटे शहर के अस्पतालों में भी वह रेट उपलब्ध नहीं है। उदाहरण के तौर पर अगर हम बात कर लें तो एक सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाने के लिए आज 500 से 1000 रुपए की जरूरत पड़ती है, लेकिन सीजीएचएस का यह रेट मात्र ₹150 है।
वहीं, गौरव पांडेय ने दवाइयों के बढ़ते दामों को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि फार्मा कंपनियों द्वारा दवाइयों के ऊपर लिखे गए एमआरपी और होलसेल के प्राइस में बहुत अंतर है, जिसका लाभ जनता को मिलना चाहिए। क्योंकि हेल्थ केयर लग्जरी नहीं है बल्कि यह एक अनिवार्य आवश्यकता है। कई बार तो यह प्राण रक्षा के लिए नितांत आवश्यक हो जाती हैं। ऐसे में सरकार को और फार्मा कंपनियों को चाहिए कि कम से कम प्रॉफिट मार्जिन पर दवाइयों को उपलब्ध कराया जाए, जिससे कि जनता को लाभ मिल सके। साथ ही दवाई बनाने में काम आने वाले कच्चे माल का उत्पादन भारत में बड़े पैमाने पर होना चाहिए जिससे कि हाल ही में हमने देखा कि जब चीन और अन्य देशों से कच्चे माल की सप्लाई आनी बंद हो गई तो हमारे देश में दवाइयों के बनना लगभग बंद सा हो गया।
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