ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक कोरोना के 80 फीसदी केस असिम्प्टोमैक और माइल्ड सिम्पटम के है जिनमे 15 फीसदी सीवियर और 5 फीसदी क्रिटिकल केस होते हैं।

आपके आस पास ऐसे लोग हो सकते हैं जिनमे कोरोना का कोई लक्षण न हो, न सर्दी खांसी हो और ना ही  इनफ्यूएंजा का कोई लक्षण लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वे कोविड 19 के कैरियर हो सकते हैं।

देश के विभिन्न राज्यो से जो रिपोर्ट आ रही है वह बेहद चौकाने वाली है।

पिछले दिनों ही दिल्ली में 186 लोग असिम्प्टोमैक पाये गये यानी जिनमे कोरोना का कोई लक्षण नही था लेकिन वे कोविड 19 पोसिटिव थे।

हिमाचल प्रदेश के आंकड़ो को देखे तो 84% केस असिप्टोमैटिक है तो वही महाराष्ट्र में ये प्रतिशत 70 और आल इंडिया लगभग 80 है जो खुद ICMR स्वीकार कर रहा है। ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि ये 80 फीसदी वैसे लोग है जो असिम्प्टोमैटिक और माइल्ड सिम्पटम वाले होते है जबकि अगर पूर्ण रूप से असिम्प्टोमैटिक मरीजो की बात करे तो 69% होते हैं।

ICMR में एपिडेमोलॉजी और कम्युनिकेबल डिसीज़ के हेड डॉ आर आर गंगाखेड़कर का कहना है कि भारत मे उन जगहों पर यह प्रतिशत ज्यादा है जहां हॉटस्पॉट है या फिर इलाका इन्फेक्टेड है।

आसिम्प्टोमैटिक केस को  साइलेंट कैरियर के सवाल पर ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जवाब में डॉ गंगाखेड़कर और स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल का कहना है कि सबका कोविड टेस्ट नहीं किया जा सके। टेस्टिंग की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नही है, टेस्ट उन्ही का होगा जिनका ट्रेवल हिस्ट्री हो, उनके कांटेक्ट में आये हो या कोई सिम्पटम दिखाई दे।

ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक कोरोना के 80 फीसदी केस असिम्प्टोमैक और माइल्ड सिम्पटम के है जिनमे 15 फीसदी सीवियर और 5 फीसदी क्रिटिकल केस होते हैं।

भारत जैसे देश मे सरकार के सामने बड़ी चुनौति है कि 1.38 करोड़ लोगों का टेस्ट कैसे किया जाए और यही वजह है कि सरकार टेस्ट के गाइडलाइंस नही बदल रही लेकिन असिप्टोमैटिक केस के आंकड़े बतला रहे है कि जिस तरह 69% लोग बिल्कुलअसिप्टोमैटिक है और साइलेंट कैरियर की तरह मौजूद है उससे इस वायरस के साइलेंट स्प्रेड की प्रबल सम्भावनाये है।

एडमिनिस्ट्रेशन का हॉटस्पॉट और कंटेन्मेंट प्लान उसी इलाके में सीमित है जहाँ कम से कम 3 से 5 केस पाये जा रहे है। उसी इलाके में मास टेस्टिंग  भी हो रही जबकि बाकी इलाके अछूते है।

हालांकि सूत्रों का कहना है कि पोलियो वैक्सीनशन से जुड़े नेटवर्क का इस्तेमाल कर सरकार आने वाले दिनों में रैपिड टेस्टिंग को बढ़ावा दे सकती है लेकिन इसके लिए लार्ज स्केल पे मैन पावर ट्रेनिंग और किट भी उपलब्ध होना चाहिये। WHO ने भी टेस्ट पर जोर देने के लिए कहा है और भारत मे भी सबसे बड़ा सवाल टेस्ट को लेकर ही है जिसकी सीमित संख्या होने के कारण नंबर ऑफ केस पर भी सवाल उठते रहे हैं।

इन्ही सब स्थितियों और मजबूरियों के मद्देनजर लॉक डाउन, सोशल डिस्टनसिंग, फिजिकल डिस्टनसिंग और हैंड हाइजीन के सहारे भारत फिलहाल इस लड़ाई में आगे बढ़ रहा है। ताकि इस लॉक डाउन के दौरान हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर को डिस्ट्रिक्ट लेवल तक बेहतर किया जा सके,साथ ही किट की उपलब्धता भी बढ़ती जाये और ज्यादा से ज्यादा टेस्ट भी हो सके।

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