कोरोना को लेकर देश और दुनिया अभी भी गम्भीर दौर से गुजर रही है. भारत में इन दिनों कोरोना एक मद्देनजर सबसे खराब स्वास्थ्य व्यवस्था की मार झेल रहा है, बिहार. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर के किसी डॉक्टर के बिहार लौटने की खबर सुकूनदेह है. भले ही वे सीधे तौर पर कोरोना की ड्यूटी से न जुड़े हों, लेकिन डॉ. चंद्रमोहन का मेडिकल क्षेत्र में अब तक का शैक्षणिक अनुभव निःसन्देह बिहार और सीधे तौर पर कहें, तो पटना एम्स में नई पीढ़ी के डॉक्टर्स की काबिलियत को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. 

डॉ. चंद्रमोहन का सम्बंध भी बिहार से है, वे पश्चिम चंपारण के रहने वाले हैं. इनके पिता सेवानिवृत्त जज हैं. डॉ. चंद्रमोहन की पढ़ाई नेतरहाट विद्यालय और पटना साइंस कॉलेज से हुई है. आगे उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की फिर उन्होंने विशेष रूप से बच्चों की चिकित्सा के क्षेत्र में एमडी किया. शिशु रोग विशेषज्ञ के तौर पर डॉ. चंद्रमोहन को लंबे समय तक काम करने का अनुभव है. देश को डॉ. चंद्रमोहन की विशेषज्ञता का विशेष लाभ तब मिला जब देश बाल मृत्यु दर कम करने के लिए टिका बनाने का अभियान शुरू हुआ.

रोटा वायरस, डायरिया और न्यूमोनिया के कारण पहले हर साल हज़ारों बच्चे जन्म के कुछ समय बाद ही दम तोड़ देते थे. आंकड़ों की नजर से देखें, तो 1990 में प्रति एक हजार पर 5 साल से कम उम्र के 126 बच्चों की मौत होती थी, 10 साल बाद 2000 में यह आंकड़ा 83 के करीब पहुंचा, लेकिन वर्तमान समय में इसमें काफी सुधार आया है, अब यह संख्या 36 के लगभग है. इसके लिए वैक्सीन बनाने के लिए दिल्ली में जिस टीम ने काम किया, डॉ. चंद्रमोहन उसके एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे.

बच्चों की चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ. चंद्रमोहन को दो दशक से ज्यादा का अनुभव है. दिल्ली के जामिया हमदर्द मेडिकल कॉलेज में उन्होंने अपनी सेवाएं दी है और दिल्ली ही नहीं, बच्चों की चिकित्सा के मामले में उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और हरियाणा की स्थिति सुधारने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अच्छी बात यह है कि बिहार के इस अनुभवी और विशेषज्ञ डॉक्टर का लाभ अब बिहारियों को भी मिलेगा.

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